दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने काम से प्यार करते है। अल्बर्ट आइंस्टीन भी उनमें से एक है। एक समय था जब नोबेल पुरस्कार प्राप्त आइंस्टीन ने इजराइल के राष्ट्रपति पद का ऑफर तक ठुकरा दिया था। लेकिन परमाणु बम बनाने का अफसोस उन्हें ताउम्र रहा।
अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1875 को हुआ था। आइंस्टीन का बचपन बड़ा संघर्षमय रहा। मां-बाप का प्यार उन्हें नहीं मिला। वे बचपन में सही तरह बोल भी नहीं पाते थे। स्कूल में अक्सर चुप रहने के कारण उन्हें बुद्ध समझा जाता था। जहां बच्चे उन्हें फादर बोर कहकर छेडते थे। वहीं टीचर लेजी डॉग कहकर उनका मजाक उड़ाते थे।
आइंस्टीन ने इन सब बात की परवाह नहीं की और वे अपनी धुन में लगे रहे। वर्ष 1902 में उन्होंने पिछले सिद्धांतों की खोज की, तो पाया कि गुरुत्वाकर्षण के दबाव का प्रश्न अभी तक हल नहीं हो पाया है। इसके बाद उन्होंने सापेक्षता के सिद्वांत की खोज की, जिसने भौतिकशास्त्र को ही बदल दिया। फिर वे पर्शियन वैज्ञानिक संस्था के सदस्य बन गए। वे पूरी जिदंगी शरणार्थी रहे, क्योंकि वे यहूदी थे। उन्होंने द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण दिया, जो भौतिक पदार्थ और ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ। उन्हें वर्ष 1921 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके बाद उन्हें इजराइल के राष्ट्रपति पद का ऑफर भी मिला, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया। क्योंकि वे एक जगह बंधकर नहीं रहना चाहते थे। उन्हें अपनी वायलिन से बेहद प्यार था।
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आइंस्टीन का कहना था कि उन्हें निर्देश पर कुछ लोगों ने परमाणु बम बनाया, जो विनाशकारी सिद्व हुआ, जिसका उन्हें जिंदगीभर पछतावा रहा।
आइंस्टीन ने पचास से अधिक शोध पत्र और विज्ञान की अलग-अलग किताबें लिखी। वर्ष 1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें शताब्दी पुरुष घोषित किया। एक सर्वेक्षण के अनुसार वे सार्वकालिक महान वैज्ञानिक थे। आज आइंस्टीन शब्द बुद्धिमानी का पयार्य माना जाता है। 18 अप्रैल 1955 को इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।
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आइंस्टीन ने किस-किस की खोज की
आइंस्टाइन ने सापेक्षता के विशेष और सामान्य सिद्वांत सहित कई योगदान दिए। उनके अन्य योगदानों में सापेक्ष ब्रह्मांड, कोशिकीय गति, क्रांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याएं, अणुओं की ब्राउनियन गति, अणुओं की उत्परिवर्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वाटंम सिद्धांत, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिक का ज्यामितीकरण शामिल है।
ऐल्बर्ट आइंस्टाइन की सफलता का रहस्य
किसी की परवाह न कर काम पर फोकस करना
अल्बर्ट आइंस्टीन ने तीन साल का होने से पहले बोलना और सात साल का होने से पहले पढ़ना शुरू नहीं किया। वे हमेशा घिसटते हुए स्कूल जाया करते थे। अपने घर का पता याद रखने में भी उन्हें दिक्कत होती थी। बच्चे और टीचर उनका मजाक उड़ाते थे। इसके चलते उन्हें स्कूल से नफरत हो गई और अक्सर वे भागकर जंगल में चले जाया करते थे। इन सब की परवाह नहीं कर उन्होंने अपने काम पर फोकस रखा और अपनी मेहनत और लगन के बल पर एक दिन दुनिया को उन्हें जीनियस कहने पर मजबूर कर दिया।
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जीवन में काम आएं, ऐसी शिक्षा पर जोर
आइंस्टीन हमेशा कहते थे कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाएं जो उन्हें जिंदगीभर काम आए, उन्हें जीने का सलीका सिखाएं। यही कारण है कि आइंस्टीन को इतिहास के टीचर से विशेष नाराजगी रहती थी। वे स्टूडेंट्स को ऐतिहासिक नाम, तिथियां, घटनाएं आदि याद करके आने के लिए कहते थे, जो उनके कठिन था। एक दिन शिक्षक के पूछने पर उन्होंने कहा कि ये चीजें तो किताबों में मिल जाती हैं, तो फिर इन्हें याद क्यों किया जाए। इस पर शिक्षक ने व्यंग्य करते हुए कहा कि फिर तुम्हें कौनसी शिक्षा चाहिए? इस पर आइंस्टीन बोले कि मुझे वह शिक्षा चाहिए जो मुझे तोता-रटंत नहीं वरन सोचना सिखाए।
सफलता पानी है तो उत्साही जिज्ञासु बनिए
जिस आइंस्टीन को बचपन में लोग बुद्ध कहते थे, बडे़ होने पर उसी को असाधारण दिमाग वाला जीनियस कहने लगे। जबकि आइंस्टीन स्वयं कहा करते थे कि उनके पास कोई असाधारण योग्यता नहीं है। सफलता के लिए उत्साही जिज्ञासु होना आवश्यक है। वे न्यूटन और डार्विन को अपना आदर्श मानते थे। क्योंकि वे प्रश्न पूछने में आइंस्टीन से भी दो कदम आगे थे। आइंस्टीन का मानना था कि प्रश्न पूछने पर लोग हमें बुद्ध समझ सकते हैं, लेकिन न पूछने से हम बुद्ध रह जाते हैं। इसलिए प्रश्न पूछने से न कभी भी हिचकना नहीं चाहिए। आइंस्टीन का कहना था उसी व्यक्ति के मन में सवाल उठेंगे, जो जिज्ञासु होगा।
पहले समझे, फिर हल करें
आइंस्टीन कहते थे कि यदि किसी सवाल को हल करने के लिए मेरे पास एक घंटे का समय हो और उस सवाल के हल पर मेरा जीवन निर्भर हो, तो भी मैं पहले 55 मिनट सवाल को समझने और पूछने में लगाऊंगा, क्योंकि यदि सवाल मेरी समझ में आ गया, तो उसका हल मैं 5 मिनट से भी कम समय में निकाल लूँगा।
किसी काम को छोटा नहीं समझें
आइंस्टीन हर काम को उचित सम्मान देते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि यदि मैं पुन: युवा हो सकता और मुझे जीविका के लिए कोई पेशा चुनने के लिए कहा जाता, तो मैं वैज्ञानिक या टीचर बनने के बजाय, घड़ीसाज या फेरी वाला बनना पसंद करूँगा, क्योंकि इन पेशों में अभी सम्मानजनक आजादी बाकी है और आइंस्टाइन को आजादी पसंद है।
कठिनाइयों से घबराएं नहीं, उनका मुकाबला करिए
आइंस्टीन कहते थे कि कठिनाइयों को जिदंगी का अनिवार्य हिस्सा मानकर चलना चाहिए। कठिनाइयों के पीछे अवसर छिपे होते हैं, क्योंकि कठिनाइयां ही अवसरों को घर होती हैं। इसलिए सफलता के अवसर प्राप्त करने के लिए कठिनाइयों से घबराने की बजाय उनका डटकर मुकाबला करना चाहिए।
क्रियेटिव बनिए
आइंस्टीन कल्पनाशील बनने का सुझाव देते थे। क्योंकि कल्पना सफलता के नए-नए द्वार खोल देती है। वे कहते थे कि तर्क आपको किसी एक बिंदू से दूसरे बिंदू तक ले जा सकते हैं, लेकिन कल्पना आपको सर्वत्र ले जा सकती है।
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