यदि आप अपने कार्यक्षेत्र में, परिवार में, समाज में यश और मान-सम्मान बढ़ाना चाहते है तो आपको रोजाना Surya Dev की आराधना करनी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य देव मान-सम्मान और यश प्रदान करने वाले है। यदि आपके मान-सम्मान में कोई कमी आ रही है, या फिर आपको बहुत मेहनत करने के बाद भी यश की प्राप्ति नहीं हो रही है तो इसका मतलब यही है कि Surya Dev आपके पक्ष में नहीं है।
ज्योतिष में बताया गया है कि जब कभी कुंडली में सूर्य अशुभ फल देने वाला होता है तो ऐसे व्यक्ति को बहुत परिश्रम और लगन से कार्य करने के बाद भी अपयश ही प्राप्त होगा। घर-परिवार और समाज में उस व्यक्ति की निंदा होगी। इससे बचने के लिए कुछ विशेष उपाय करने की आवश्यकता है। तो आइए जानते हैं कि किस तरह सूर्यदेव को प्रसन्न किया जाएं। जिससे घर-परिवार में धन के आगमन के साथ-साथ मान-सम्मान की प्राप्ति भी हो सकें।
- रोजाना सबसे पहले नित्य क्रियाएं से निवृत्त होकर नहाने के बाद सूर्य को जल अवश्य चढ़ाएं।
- Surya Dev को जल चढ़ाते समय गायत्री मंत्र या सूर्य मंत्र ओम भास्कराय नमः, ओम आदित्याय नमः, ओम सूर्याय नमः आदि का जप करें।
- सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए रविवार का व्रत रखें।
- रविवार को नमक से सेवन से बचना चाहिए। इससे सूर्य देव जल्दी ही प्रसन्न होते है।
- कम से कम 11 रविवार केवल दही और चावल का ही सेवन करें।
- रविवार के दिन बहते हुए जल में तांबे का एक सिक्का प्रवाहित करें।
- सूर्य के अशुभ होने पर व्यक्ति को अपने साथ हमेशा तांबे का सिक्का रखना चाहिए।
- रविवार को गाय को गुड़ और चारा खिलाना चाहिए।
- 21 रविवार श्रीगणेश को लाल रंग के फूल चढ़ाएं।
- सूर्य से संबंधित वस्तुएं किसी से भी दान या उपहार में नहीं लें।
- ज्योतिष परामर्शदाता से अपनी जन्म कुंडली दिखाकर भी सलाह-मशविरा अवश्य करें।
Surya Dev Ki Aarti ( सूर्य देव की आरती )
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
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