नई दिल्ली। वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने आखिरकार कांग्रेस से पांच दशक पुराना रिश्ता तोड़ ही दिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर सीधा हमला करते हुए आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, कपिल सिब्बल, अश्विनी कुमार और सुनील जाखड़ जैसे दिग्गजों के बाद आजाद का जाना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम पांच पन्नों का पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने राहुल को विलेन के रूप में पेश किया। आजाद ने दावा किया कि आप (सोनिया गांधी) नाम के लिए पद पर हैं। सभी फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं। उससे भी बदतर हाल यह है कि उनके सुरक्षाकर्मी और पीए फैसले ले रहे हैं। राहुल ने पार्टी के भीतर सलाहकार तंत्र ध्वस्त कर दिया है। 2013 में राहुल को उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद पार्टी में परामर्श की प्रक्रिया खत्म हो गई। वरिष्ठ व अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया और अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी चलाने लगी।
राहुल ने यूपीए सरकार के समय मीडिया के सामने सरकारी अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी थी। वह अपरिपक्व और बचकानी हरकत थी। इस एक हरकत ने 2014 में यूपीए की हार में अहम योगदान दिया। आजाद ने लिखा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी ‘पूरी तरह बर्बाद हो गई है।’ नेतृत्व आंतरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है।’ आजाद ने ऐसे समय पार्टी छोड़ी, जब कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तैयारी कर रही है। उन्होंने लिखा, पार्टी को पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ निकालनी चाहिए थी। कांग्रेस जिस स्तर पर है, वहां से लौटना, नामुमकिन है।
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राहुल ने कौन सा अध्यादेश फाड़ा था
आजाद ने जिस अध्यादेश की कॉपी फाड़ने का जिक्र किया वह दागी माननीयों को लेकर है। यूपीए-2 के समय सुप्रीम कोर्ट ने दोषी सिद्ध होने पर विधायक या सांसद की संसद या विधानसभा सदस्यता खत्म करने का आदेश दिया था। इस फैसले को बदलने के लिए तत्कालीन मनमोहन िसंह सरकार अध्यादेश लाई थी। राहुल इसके खिलाफ थे। उन्होंने 27 सितंबर, 2013 को मीडिया के सामने अध्यादेश की प्रति फाड़ दी थी। इसके बाद सरकार ने अध्यादेश से कदम पीछे खींच लिए थे।
पार्टी सब कुछ दिया, वे बिना पद के एक क्षण नहीं रह सकते: कांग्रेस
कांग्रेस ने आजाद के इस्तीफे और पत्र को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद’ करार देते हुए कहा, उनका रिमोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा, ऐसे समय पर जब बीमार सोनिया गांधी चेकअप के लिए विदेश गई हैं, तब उन पर ऐसे आरोप लगाना अमानवीय है। पहले भी जब सोनिया बीमार थीं, जब आजाद ने पत्र लिखा। पिछले 42 साल से पार्टी, सरकार में पदों पर रहे आजाद किसी समय संजय गांधी के चापलूस कहे जाते थे। वहीं, जी-23 में शामिल रहे पूर्व कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा, आजाद का पत्र हताशा और विश्वासघात दिखाता है।
चुनाव से पहले या बाद में भाजपा से गठबंधन संभव
इस्तीफे के बाद आजाद ने पहली प्रतिक्रिया में कहा कि वे जम्मू-कश्मीर आ रहे हैं और अपनी पार्टी बनाएंगे। उनके सामने चार विकल्प हैं:
1. अकेले चुनाव लड़ें: नई पार्टी बनाएंगे और बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव लड़ेंगे।
2. किंगमेकर की भूमिका: यदि उनकी पार्टी सरकार बनाने में असफल रही तो चुनाव के बाद भाजपा के साथ गठबंधन कर सकते हैं और किंगमेकर की भूमिका में रह सकते हैं।
3. चुनाव पूर्व गठबंधन: चुनाव पूर्व गठबंधन भी संभव। जम्मू में भाजपा की स्थिति अच्छी है। कश्मीर में आजाद से भाजपा को फायदा मिल सकता है।
4. गुपकार का साथ: भाजपा को हराने के लिए क्षेत्रीय दल गुपकार के रूप में एक हैं। इसमें जाने का विकल्प है, हालांकि संभावना कम है। दरअसल, आजाद की भाजपा से नजदीकी जगजाहिर है।
गुलाम की प्रासंगिकता व स्वीकार्यता
कांग्रेस के पास जम्मू-कश्मीर में नेतृत्व के लिए आजाद के कद का नेता नहीं है। फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेता अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटने, परिसीमन और वोटर लिस्ट में सुधार के बाद भाजपा जम्मू-कश्मीर में सपने देख रही है। उसके पास भी कश्मीर में नेतृत्व की कमी है। जबकि आजाद की स्वीकार्यता जम्मू व कश्मीर दोनों ही क्षेत्रों में है।
आजाद के समर्थन में 7 इस्तीफे
आजाद के इस्तीफे के बाद जम्मू-कश्मीर में उनके खेमे के सात पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। इनमें पूर्व मंत्री आरएस चिब और जीएम सरूरी, पूर्व विधायक मोहम्मद अमीन भट, हाजी अब्दुल रशीद, गुलजार अहमद वाणी, चौधरी मोहम्मद अकरम और जुगल किशोर शामिल हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक आजाद अगर पार्टी बनाते हैं तो यह फैसला भाजपा को फायदा पहुंचाएगा।
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