Hanuman Chalisa hindi : श्रीहनुमान चालीसा का इस तरह करें 11 बार पाठ, 24 घंटे में मिलेगी खुशखबरी

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    Hanuman Chalisa hindi : श्रीहनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को एक साथ सारी वस्तुएं सरलता और सुगमता से प्राप्त हो जाती है। भाषा और आकार की दृष्टि से यह जितनी सरल और छोटी है, उतना ही इसका प्रभाव अधिक है। आज देश के करोड़ों लोगों की दैनिक आराधना का प्रथम सोपान हनुमान चालीसा है। हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग करते है, लेकिन उसके भावार्थ को बहुत कम लोग जानते है। यदि आप लिखित में हनुमान चालीसा चाहते है तो इसका प्रिंट निकाल सकते है। इसके अलावा आप Google पर hanuman chalisa lyrics या hanuman chalisa pdf लिखकर भी सर्च कर सकते है। ऐसे में आपको Hanuman Chalisa hindi के बहुत सारे रिजल्ट मिल जाएंगे।

    Google इस मामले में काफी समृद्ध है। वहां आपके काम आने वाली उपयोगी सामग्री आसानी से मिल जाती है। यदि आप अंग्रेजी, तेलुगू या बंगाली भाषा के जानकार है और shri hanuman chalisa भी अपनी भाषा में चाहते हैं तो इसके लिए आपको Google पर hanuman chalisa in english, hanuman chalisa in bengali और hanuman chalisa telugu लिखकर सर्च करना होगा। क्लिक करते ही आपके सामने हजारों ऑप्शन होंगे। आज हम यहां हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa hindi) को पूरे भावार्थ के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। जिससे लोगों को हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) के दोहों में छिपे गुढ़ भावार्थ समझ में आ सके। लेकिन उससे पहले संकटमोचन हनुमानजी की स्तुति और वंदन करना जरूरी है।

    अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

    सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

    ‘ अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु)- के समान कांतियुक्त शरीरवाले, दैत्यरूपी वन (-को ध्वंस करने)- के लिए अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी को मैं प्रणाम करता हूँ।’

    Hanuman Chalisa Hindi अब प्रारंभ करते है

    ॥ दोहा॥

    श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
    बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

    भावार्थ-श्रीगुरुदेव के चरण कमलों की धूलि से अपने मनरूपी दर्पण को निर्मल करके मैं श्रीरघुवर के उस सुंदर यश का वर्णन करता हूँ जो चारो फल (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) को प्रदान करनेवाला है।

    व्याख्या– मनरूपी दर्पण में शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंधरूपी विषयों की पांच परतो वाली जो काई (मैल) चढ़ी हुई है वह साधारण रज से साफ होने वाली नहीं है। अत: इसे स्वच्छ करने के लिए ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’ की आवश्यकता पड़ती है। साक्षात भगवान शंकर ही यहां गुरुस्वरूप वर्णिंत है-‘गुरुं शंकररूपिणम्।’ भगवान शंकर की कृपा से ही रघुवर के सुयशका वर्णन करना संभव है।


    बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
    बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

    भावार्थ-हे पवनकुमार मैं अपने को शरीर और बुद्धि से हीन जानकर आपका स्मरण (ध्यान) कर रहा हूँ। आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरे सभी कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिए।

    व्याख्या– मैं अपने को देही न मानकर देह मान बैठा हूँ, इस कारण बुद्धिहीन हूँ और पांचों प्रकार के क्लेश (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश) तथा षड्विकारों (काम, क्रोध, लोभ, माेह, मद, मत्सर) -से संतप्त हूँं, अत: आप जैसे सामर्थ्यवान ‘अतुलितबलधाम’ ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम्’ से बल, बुद्धि एवं विद्या की याचना करता हूँं तथा सभी क्लेशों एवं विकारों से मुक्ति पाना चाहता हूँ।

    ॥ चौपाई ॥

    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
    जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

    भावार्थ-ज्ञान और गुणों से सागर श्रीहनुमानजी की जय हो। तीनों लोकों (स्वर्गलोक, भूलोक, पाताललोक) को अपनी कीर्ति से प्रकाशित करने वाले कपिश्वर श्रीहनुमानजी की जय हो।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी कपिरू में साक्षात शिव के अवतार हैं, इसलिए यहां इन्हें कपिश कहा गया है। यहां हनुमानजी के स्वरूप की तुलना सागर से की गई है। सागर की दो विशेषताएं हैं- एक तो सागर से भंडार का तात्पर्य है और दुसरा सभी वस्तुओं की उसमें परिसमाप्ति होती है। श्रीहनुमानजी भी ज्ञान के भंडार है और इनमें सभी गुण समाहित हैं। किसी विशिष्ट व्यक्ति का ही जय जयकार किया जाता है। हनुमानजी ज्ञानियों में अग्रगण्य, सकल गुणों के निधान तथा तीनों लोकों को प्रकाशित करने वाले हैं, अत: यहां उनका जय-जयकार किया गया है।

    राम दूत अतुलित बल धामा।
    अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

    भावार्थ-हे अतुलित बल के भंडारघर रामदूत हनुमानजी ! आप लोक में अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम से विख्यात हैं।

    व्याख्या– सामान्यत: जब किसी से कोई कार्य सिद्ध करना हो तो उसके सुपरिचित, इष्ट अथवा पूज्यका नाम लेकर उससे मिलने पर कार्य की सिद्धि होने में देर नहीं लगती। अत: यहां हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्रीराम, माता अंजनी तथा पित पवनदेव का नाम लिया गया।

    महाबीर बिक्रम बजरंगी।
    कुमति निवार सुमति के संगी॥

    भावार्थ-हे महावीर! आप वज्र के समान अंगवाले और अनंत पराक्रमी हैँ। आप कुमति (दुर्बुद्धि) का निवारण करने वाले हैं तथा सद्बुद्धि धारण करने वालों के संगी (साथी व सहायक) हैं।

    व्याख्या– किसी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सर्वप्रथम उसके गुणों का वर्णन करना चाहिए। अत: यहां हनुमानजी के गुणों का वर्णन है। श्रीहनुमन्तलालजी त्याग, दया, विद्या तथा युद्ध – इन पांच प्रकार के वीरतापूर्ण कार्यों में विशिष्ट स्थान रखते है, इस कारण ये महावीर है। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय होने के कारण आप विक्रम ओर बजरंगी है। प्राणिमात्र के परम हितैषी होने के कारण उन्हें विपत्ति से बचाने के लिए उनकी कुमति को दूर करते है तथा सुमति हैं, उनके आप सहायक है।

    कंचन बरन बिराज सुबेसा।
    कानन कुण्डल कुँचित केसा॥

    भावार्थ-आपके स्वर्ण के समान कांतिमान अंग पर सुंदर वेशभूषा, कानों में कुंडल और घुंघराले केश सुशोभित हो रहे हैं।

    व्याख्या– इस चौपाई में श्रीहनुमंतलालजी के सुंदर स्वरूप का वर्णन हुआ है। आपकी देह स्वर्ण-शैल की आभा के सदृश सुंदर है और कान में कुंडल सुशोभित हैँ। उपयुक्त दोनों वस्तुओं से तथा घुंघराले बालों से आप अत्यंत सुंदर लगते हैं।

    हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
    काँधे मूँज जनेउ साजै॥

    भावार्थ-आपके हाथ में व्रज (वज्रके समान कठोर गदा) और (धर्मका प्रतीक) ध्वजा विराजमान है तथा कंधे पर मूंज का जनेऊ सुशोभित है।

    व्याख्या– सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार वज्र एवं ध्वजा का चिह्न सर्वसमर्थ महानुभाव एवं सर्वत्र विजयश्री प्राप्त करने वाले के हाथ में होता है और कंधे पर मूंज का जनेऊ नैष्ठिक ब्रह्मचारी का लक्षण है। श्रीहनुमानजी इन सभी लक्षणों से संपन्न हैं।

    संकर सुवन केसरी नंदन।
    तेज प्रताप महा जगवंदन॥

    भावार्थ-आप भगवान शंकर के अंश (अवतार) और केसरीपुत्र के नाम से विख्यात हैं। आप (अतिशय) तेजस्वी, महान प्रतापी और समस्त जगत् के वंदनीय है।

    व्याख्या– प्राणिमात्र के लिए तेजी की उपसाना सर्वोंत्कृष्ट है। तेज से ही जीवन है। अंतकाल में देहाकाश से तेज ही निकलकर महाकाश में विलीन हो जाता है।

    बिद्यावान गुनी अति चातुर।
    राम काज करिबे को आतुर॥

    भावार्थ-आप सारी विद्याओं में संपन्न, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप भगवान श्रीराम का कार्य (संसार के कल्याण का कार्य) पूर्ण करने के लिए तत्पर (उत्सुक) रहते हैं।

    व्याख्या– श्रीहनुमंतलालजी समग्र विद्याओं में निष्णात हैं और समस्त गुणों को धारण करने से सकलगुणनिधान है। वे श्रीराम के कार्य संपादन के लिए अत्यंत आतुरता का भाव रखने वाले हैं। क्योंकि ‘राम काज लगि तव अवतारा’ यही उद्घोषित करता है कि श्रीहनुमानजी के जन्म का मूल भगवान श्रीराम के हित-कार्यों का संपादन ही है।

    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
    राम लखन सीता मन बसिया॥

    भावार्थ-आप प्रभु श्री राघवेंद्र का चरित्र (उनकी पवित्र मंगलमयी कथा) सुनने के लिए सदा लालायित और उत्सुक (कथारस के आनंद में निमग्न) रहते हैं। श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीताजी सदा आपके ह्रदय में विराजमान रहते हैं।

    व्याख्या‘राम लखन सीता मन बसिया’ – इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि भगवान श्रीराम, श्रीलक्ष्मणजी एवं भगवती सीताजी के ह्रदय में आप बसत हैं।

    सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
    बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

    भावार्थ-आपने अत्यंत लघु रूप धारण करके माता सीताजी को दिखाया और अत्यंत विकराल रूप धारण कर लंका नगरी को जलाया।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी अष्टसिद्वियों से संपन्न हैं। उनमें सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं अति विस्तीर्ण दोनों रूपों को धारण करने की विशेष क्षमता विद्यमान है। वे शिव (ब्रह्म)-का अंश होने के कारण तथा अत्यंत सूक्ष्म रूप धारण करने से अविज्ञेय भी हैं- ‘सूक्ष्मात्वात्तदविज्ञेयम्’ साथ ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, अहंकार, दंभ आदि भयावह एवं विकराल दुर्गुणों से युक्त लंका को विशेष पराक्रम एवं विकट रूप से ही भस्मसात् किया जाना संभव था। अत: श्रीहनुमानजी ने दूसरी परिस्थिति में विराट रूप धारण किया।

    भीम रूप धरि असुर सँहारे।
    रामचन्द्र के काज सँवारे॥

    भावार्थ-आपने अत्यंत विशाल और भयानक रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और विविध प्रकार से भगवान श्रीरामचंदजी के कार्यों को पूरा किया।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी परब्रह्म रामकी क्रियाशक्ति हैं। अत: उसी शक्ति के द्वारा उन्होंने भयंकर रूप धारण करके असुरों का संहार किया। भगवान श्रीराम के कार्य में लेशमात्र भी अपूर्णता श्रीहनुमानजी के लितए सहनीय नहीं थी। तभी तो ‘राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां बिश्राम’ का भाव अपने ह्रदय में सतत संजोये हुए वे प्रभु श्रीरामके कार्य संवारने में सदा क्रियाशील रहते थे।

    लाय सजीवन लखन जियाए।
    श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥

    भावार्थ– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया। इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने आपको ह्रदय से लगा लिया।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी को उनकी स्तुति में श्रीलक्ष्मण-प्राणदाता भी कहा गया है। श्रीसुषेण वैद्य के परामर्श के अनुसार आप द्रोणाचल पर्वत पर गए। अनेक व्यवधानों एवं कष्टों के बाद भी समय के भीतर ही संजीवनी बूटी लाकर श्रीलक्ष्मणजी के प्राणों की रक्षा की। विशेष स्नेह और प्रसन्नता के कारण ही किसी को ह्रदय से लगाया जाता है। अंशकी पूर्ण परिणति अंशी से मिलने पर ही होती है, जिसे श्रीहनुमंतलालजी ने चरितार्थ किया।

    रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
    तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

    भावार्थ-भगवान राघवेंद्र ने आपकी बड़ी प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो।

    व्याख्या– श्रीरामचंद्रजी ने हनुमानजी के प्रति अपनी प्रियता की तुलना भरत के प्रति अपनी प्रीति से करके हनुमानजी को विशेष रूप से महिमा मंडित किया है। भरत के समान राम का प्रिय कोई नहीं हैं-क्योंकि समस्त जगत्द्वारा आराधित श्रीराम स्वयं भरत का जप करते हैं।

    भरत सरिस को राम स्नेही। जगु जप राम रामु जप जेही।।

    सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
    अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥

    भावार्थ-हजार मुखवाले श्रीशेषजी सदा तुम्हारे यशका गान करते रहेंगे-ऐसा कहकर लक्ष्मीपति विष्णुरूप भगवान श्रीराम ने आपको अपने ह्रदय से लगा लिया।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी की चतुर्दिक् प्रशंषा हजारों मुखों से होती रहे-ऐसा कहते हुए भगवान श्रीराम ने श्रीहनुमानजी को कंठ से लगा लिया।

    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
    नारद सारद सहित अहीसा॥

    जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
    कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

    भावार्थ-श्रीसनक, सनातन, सनंदन, सनत्कुमार आदि मुनिगण, ब्रह्म आदि देवगण, नारद, सरस्वती, शेषनाग, यमराज, कुबेर तथा समस्त दिक्पाल भी जब आपका यश कहने में असमर्थ हैं तो फिर (सांसारिक) विद्धान तथा कवि उसे कैसे कह सकते हैं? अर्थात आपका यश अवर्णनीय है।

    व्याख्या– उपमा के द्वारा किसी वस्तु का आंशिक ज्ञान हो सकता है, पूर्ण ज्ञान नहीं। कवि-कोविद उपमा का ही आश्रय लिया करते हैं। श्रीहनुमानजी की महिमा अनिर्वचनीय है। अत: वाणी के द्वारा उसका वर्णन करना संभव नहीं।

    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना।
    राम मिलाय राज पद दीह्ना॥

    भावार्थ-आपने वानरराज सुग्रीव का महान उपकार किया तथा उन्हें भगवान श्रीराम से मिलाकर (बालि वध के उपरांत) राजपद प्राप्त करा दिया।

    व्याख्या– राजपद पर सुकंड की ही स्थिति है और उसका ही कंठ सुकंठ है जिसके कंठ पर सदैव श्रीरामनाम का वास हो। यह कार्य श्रीहनुमानजी की कृपा से ही संभव है। सुग्रीव बालि के भय से व्याकुल रहता था और उसका सर्वस्व हरण कर लिया गया था। भगवान श्रीराम ने उसका गया हुआ राज्य वापस दिलवा दिया तथा उसे भयरहित कर दिया। श्रीहनुमानजी ने ही सुग्रीव की मित्रता भगवान राम से कराई।

    तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना।
    लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

    भावार्थ-आपके परम मंत्र (परामर्श)-को विभीषण ने ग्रहण किया। इसके कारण वे लंका के राजा बन गए। इसके कारण वे लंका के राजा बन गए। इस बात को सारा संसार जानता है।

    व्याख्या– श्री हनुमानजी महाराज ने श्रीविभीषणजी को शरणागत होने का मंत्र दिया था, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा हो गए।

    जुग सहस्त्र जोजन पर भानु।
    लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

    भावार्थ-हे हनुमानजी! (जन्म के समय ही) आपने दो हजार योजनकी दूरी पर स्थित सूर्य को (कोई) मीठा फल समझकर निगल लिया था।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी को जन्म से ही आठों सिद्वियां प्राप्त थी। वे जितना ऊंचा चाहें उड़ सकते थे, जितना छोटा या बड़ा शरीर बनाना चाहें बना सकते थे तथा मनुष्यरुप अथवा वानररूप धारण करने की उनमें क्षमता थी।

    प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
    जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

    भावार्थ-आप अपने स्वामी श्रीरामचंद्रजी की मुद्रिका (अंगूठी)-को मुख में रखकर (सौ योजन विस्तृत) महासमुद्र को लांघ गए थे। (आपकी अपार महिमा को देखते हुए) इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं हैं।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी महाराज को समस्त सिद्धियां प्राप्त हैं तथा उनके ह्रदय में प्रभु विराजमान हैं तथा उनके ह्रदय में प्रभु विराजमान हैं, इसलिए सभी शक्तियां भी आपके साथ रहेंगी ही। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

    दुर्गम काज जगत के जेते।
    सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

    भावार्थ-हे महाप्रभु हनुमानजी ! संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं वे सब आपकी कृपापात्र से सरल हो जाते हैं।

    व्याख्या– संसार में रहकर मोक्ष (जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति ) प्राप्त करना ही दुर्गम कार्य है, जो आपकी कृपा से सुलभ है। आपका अनुग्रह न होने पर सुगम कार्य भी दुर्गम प्रतीत होता है, परंतु सरल साधन से जीव पर श्रीहनुमानजी की कृपा शीघ्र हो जाती है।

    राम दुआरे तुम रखवारे।
    होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

    भावार्थ-भगवान श्रीरामचंद्रजी के द्वार के रखवाले (द्वारपाल) आप ही हैं। आपकी आज्ञा के बिना उनके दरबार में किसी का प्रवेश नहीं हो सकता (अर्थात भगवान् रामकी कृपा और भक्ति प्राप्त करने के लिए आपकी कृपा बहुत आवश्यक है)।

    व्याख्या– संसार में मनुष्य के लिए चार पुरुषार्थ हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोश्र। भगवान के दरबार में बड़ी भीड़ न हो इसके लिए भक्तों के तीन पुरषार्थ को हनुमानजी द्वार पर ही पूरा कर देते हैं। अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति के अधिकारी श्रीहनुमंतलालजी की अनुमति से भगवान का सान्निध्य पाते हैं। मुक्ति के चार प्रकार हैं- सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य एवं सायुज्य। यहां प्राय: सालोक्यमुक्ति से अभिप्राय है।

    सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
    तुम रक्षक काहू को डरना॥

    भावार्थ-आपकी शरण में आए हुए भक्त को सभी सुख प्राप्त हो जाते हेँ। आप जिसके रक्षक हैं उसे किसी भी व्यक्ति या वस्तु का भय नहीं रहता है।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी महाराज की शरण लेने पर सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, भौतिक भय समाप्त हो जाते हैं तथा तीनों प्रकार के -आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक सुख सुलभ हो जाते हैं।

    आप सुखनिधान हैं तथा सभी सुख आपकी कुपा से सुलभ हैँ। यहां सभी सुखका तात्पर्य आत्यन्तिक सुख तथा परम सुख से है। परमात्मप्रभु की शरण में जाने पर सदैव के लिए दुखों से छुटकारा मिल जाता है तथा शाश्वत शांति प्राप्त हो जाती है।

    आपन तेज सम्हारो आपै।
    तीनों लोक हाँक तै काँपै॥

    भावार्थ-अपने तेज (शक्ति, पराक्रम, प्रभाव और बल)- के वेग को स्वयं आप ही संभाल सकते हैं। आपके एक हुंकारमात्र से तीनों लोक कांप उठते हैं।

    व्याख्या– देवता, दानव और मनुष्य-तीनों ही आपके तेजको सहन करने में असमर्थ हैं। आपकी भंयकर गर्जना से तीनों लोक कांपने लगते हैं।

    भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
    महावीर जब नाम सुनावै॥

    भावार्थ-भूत-पिशाच आदि आपका ‘महावीर’ नाम सुनते ही (नामोच्चारण करने वाले के) समीप नहीं आते हैं।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी का नाम लेने मात्र से भूत-पिशाच भाग जाते हैं तथा भूत-प्रेत आदि की बाधा मनुष्य के पास भी नहीं आ सकती। श्रीहनुमानजी का नाम लेते ही सारे भय दूर हो जाते हैं।

    नासै रोग हरै सब पीरा।
    जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

    भावार्थ-वीर हनुमानजी का निरंतर जप करने से वे रोगों का नाश करते हैं तथा सारी पीड़ा का हरण करते हैं।

    व्याख्या– रोग के नाश के लिए बहुत से साधन एवं औषधियां हैं। यहां रोग का मुख्य तात्पर्य भव रोग से तथा पीड़ा का तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक)- से है जिसका शमन श्रीहनुमानजी के स्मरणमात्र से होता है। श्री हनुमानजी के स्मरण से निरोगता तथा निर्द्वन्द्वता प्राप्त होती है।

    संकट तै हनुमान छुडावै।
    मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

    भावार्थ– हे हनुमानजी ! यदि कोई मन, कर्म और वाणी द्वारा आपका (सच्चे ह्रदय से) ध्यान करे तो निश्चय ही आप उसे सारे संकटों से छुटकारा दिला देते हैं।

    व्याख्या– जो मन से सोचते हैं वही वाणी से बोलते हैं तथा वही कर्म करते हैं- ऐसे महात्मागण को हनुमानजी संकट से छुड़ाते हैं। जो मन में कुछ सोचते हैं, वाणी से कुछ दूसरी बात बोलते हैं तथा कर्म कुछ और करते हैं, वे दुरात्मा हैं। वे संकट से नहीं छूटते।

    सब पर राम तपस्वी राजा।
    तिनके काज सकल तुम साजा॥

    भावार्थ– तपस्वी राम सारे संसार के राजा हैं। (ऐसे सर्वसमर्थ) प्रभु के समस्त कार्यों को आपने ही पूरा किया।

    व्याख्या ‘पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू’ के अनुसार श्रीरामचंद्रजी वन के राजा हैं और मुनिवेश में हैं। वन में श्रीहनुमानजी ही राम के निकटतम अनुचर हैं। इस कारण समस्त कार्यों को सुंदर ढंग से संपादन करने का श्रेय उन्हीं को है।

    और मनोरथ जो कोई लावै।
    सोई अमित जीवन फल पावै

    भावार्थ– हे हनुमानजी ! आपके पास कोई किसी प्रकार का भी मनोरथ (धन, पुत्र, यश आदि की कामना) लेकर आता है, उसकी वह कामना अवश्य पूरी होती है। इसके साथ ही ‘अमित जीवन फल’ अर्थात भक्ति भी उसे प्राप्त होती है।

    व्याख्या– गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी की ‘कवितावली’ में ‘अमित जीवन फल’ का वर्णन इस प्रकार है-

    सियराम-सरूपु अगाध अनूप बिलोचन-मीननको जलु है।

    श्रुति रामकथा, मुख रामको नामु, हिएं पुनि रामहिको थलु है।।

    श्रीसीतारामजी के चरणों में प्रीति और भक्ति प्राप्त हो जाय, यही जीवनफल है। यह प्रदान करने की क्षमता श्रीहनुमानजी में ही है।

    चारों जुग परताप तुम्हारा।
    है परसिद्ध जगत उजियारा॥

    भावार्थ– हे हनुमानजी ! चारो युगों (सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) -में आपका प्रताप जगत को सदैव प्रकाशित करता चला आया है-ऐसा लोक में प्रसिद्व है।

    व्याख्या– मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन-रात्रि में चारों युग आते-जाते रहते हैं। इसकी अनुभूति श्रीहनुमानजी के द्वारा ही होती है अथवा जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय-चारों अवस्था में भी आप ही द्रष्टा रूप में सदैव उपस्थित रहते हैं।

    साधु सन्त के तुम रखवारे।
    असुर निकंदन राम दुलारे॥

    भावार्थ– आप साधु-संत की रक्षा करने वाले हैं, राक्षसों का संहार करने वाले हैं और श्रीरामजी के अति प्रिय हैं।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी महाराज राम के दुलारे हैं। तात्पर्य यह है क कोई बात प्रभु से मनवानी हो तो श्रीहनुमानजी की आराधना करें।

    अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
    अस बर दीन जानकी माता॥

    भावार्थ-माता जानकी ने आपको वरदान दिया है कि आप आठों प्रकार की सिद्वियां (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व) और नवों प्रकार की निधियाँ (पद्य, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्व) प्रदान करने में समर्थ होंगे।

    व्याख्या– रुदावतार होने के कारण समस्त प्राकर की सिद्वियाँ एवं निधियाँ श्रीहनुमानजी को जन्म से ही प्राप्त थी। उन सिद्वियों को दूसरों को प्रदान करने की शक्ति मां जानकी के आशीर्वाद से प्राप्त हुई।

    राम रसायन तुम्हरे पासा ।
    सदा रहो रघुपति के दासा॥

    भावार्थ-अनंतकाल से आप भगवान श्रीराम के दास हैं। अत: रामनारूपी रसायन (भवरोग की अमोघ औषधि) सदा आपके पास रहती है।

    व्याख्या– कोई औषधि सिद्व करने के बाद ही रसायन बन पाती है। उसके सिद्वि की पुन: आवश्यकता नहीं पड़ती, तत्काल उपयोग में लायी जा सकती है और फलदायक सिद्व हो सकती है। अत: रामनाम रसायन हो चुका है, इसकी सिद्वि की कोई आवश्यकता नहीं है। सेवन करने से सद्य:फल प्राप्त होगा।

    तुम्हरे भजन राम को पावै।
    जनम जनम के दुख बिसरावै॥

    भावार्थ– आपके भजन से लाेग श्रीराम को प्राप्त कर लेते हैं और अपने जन्म-जन्मान्तर के दु:खों को भूल जाते हैं, अर्थात उन दु:खों से उन्हें मुक्ति मिल जाती है।

    व्याख्या– भजन का तात्पर्य यहां सेवा से है। सेवा दो प्रकार की होती है-पहली सकाम, दूसरी निष्काम। प्रभु को प्राप्त करने के लिए निष्काम और नि:स्वार्थ सेवा की आवश्यकता है जैसा कि श्रीहनुमानजी करते चले आ रहे हैं। अत: श्रीरामजी हनुमानजी -जैसी सेवा से यहां संकेत है।

    अंतकाल रघुवरपुर जाई।
    जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

    भावार्थ-अंत समय में मृत्यु होने पर वह भक्त प्रभु के परमधाम (साकेत-धाम) जाएगा और यदि उसे जन्म लेना पड़ा तो उसकी प्रसिद्वि हरिभक्त के रूप में हो जाएगी।

    व्याख्या– भजन अथवा सेवा का परम फल है हरिभक्ति की प्राप्ति। यदि भक्त को पुन: जन्म लेना पड़ा तो अवध आदि तीर्थों में जन्म लेकर प्रभु का परम भक्त बन जाता है।

    और देवता चित्त ना धरई।
    हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥

    भावार्थ– आपकी इस महिमा को जान लेने के बाद कोई भी प्राणी किसी अन्य देवता को ह्रदय में धारण न करते हुए भी आपकी सेवा से ही जीवन का सभी सुख प्राप्त कर लेता है।

    व्याख्या– श्रीहनुमानजी से अष्टसिद्वि और नवनिधि के अतिरिक्त मोक्ष या भक्ति भी प्राप्त की जा सकती है। इस कारण इस मानव जीवन की अल्पायु में बहुत जगह न भटकने की बात कही गयी है। ऐसा दिशा-निर्देश किया गया है जहां से चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) प्राप्त किए जा सकते हैं।

    यहां सर्वसुख का तात्पर्य आत्यन्तिक सुख से है जो श्रीमारुतनंदन के द्वारा ही मिल सकता है।

    संकट कटै मिटै सब पीरा।
    जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

    भावार्थ– जो प्राणी वीर श्रेष्ठ श्रीहनुमानजी का ह्रदय से स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और सभी प्रकार की पीड़ाएं समाप्त हो जाती है।

    व्याख्या– जन्म, मरण, यातना का अंत अर्थात भवबंधन से छुटकारा परमात्म प्रभु ही करा सकते हैं। भगवान श्रीहनुमानजी के वश में हैं। अत: श्रीहनुमानजी संपूर्ण संकट और पीड़ाओं को दूर करते हुए जन्म-मरण के बंधन से मुक्त कराने में पूर्ण समर्थ हैं।

    जै जै जै हनुमान गोसाईं।
    कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

    भावार्थ– हे हनुमान् स्वामी ! आपकी जय हो ! जय हो ! जय हो !!! आप श्रीगुरुदेव की भांति मेरे ऊपर कृपा कीजिए।

    व्याख्या– गुरुदेव जैसे शिष्य की धृष्टता आदि का ध्यान नहीं रखते और उसके कल्याण में लगे रहते हैं (जैसे काकभुशुण्डि के गुरु), उसी प्रकार आप भी मेरे ऊपर गुरुदेव की भांति कृपा करें- ‘प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो।’

    जो सत बार पाठ कर कोई।
    छूटहि बंदि महा सुख होई॥

    भावार्थ– जो इस (हनुमानचालीसा)- का सौ बार पाठ करता है, वह सारे बंधनों और कष्टों से छुटकारा पा जाता है और उसे महान सुख (परमपद-लाभ)- की प्राप्ति होती है।

    व्याख्या– श्रीहनुमानचालीसा के पाठ की फलश्रृति इस तथा अगली चौपाई में बतलाई गई है। संसार में किसी प्रकार के बंधन से मुक्त होने के लिए सौ पाठ तथा दशांशरूप में ग्यारह पाठ, इस प्रकार एक सौ से ग्यारह पाठ करना चाहिए। इससे वह व्यक्ति प्रभु श्रीराम के सामीप्य का लाभ उठाकर अनंत सुख प्राप्त करता है।

    जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
    होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

    भावार्थ– जो व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा,उसे निश्चित रूप से सिद्वियाें (लौकिक एवं पारलौकिक)- की प्राप्ति होगी, भगवान शंकर इसके स्वयं साक्षी हैं।

    व्याख्या– श्रीशंकरजी के साक्षी होने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीसदाशिपकी प्रेरणा से ही श्रीतुलसीदासजी ने श्रीहनुमानचालीसा की रचना की। अत: इसे भगवान शंकर का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिए यह हनुमानजी की सिद्व स्तुति है।

    तुलसीदास सदा हरि चेरा।
    कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥

    भावार्थ-हे नाथ श्रीहनुमानजी! तुलसीदास सदा -सर्वदा के लिए श्रीहरि (भगवान श्रीराम)- के सेवक है। ऐसा समझकर आप उसके ह्रदय में निवास कीजिए।

    व्याख्या– श्रीहनुमानचालीसा (shri hanuman chalisa) में श्रीहनुमानजी की स्तुति करने के बाद इस चौपाई में श्रीतुलसीदासजी ने उनसे अंतिम वरदान मांग लिया है कि हे हनुमानजी ! आप मेरे ह्दय में सदैव निवास करें।

    ॥ दोहा ॥

    पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
    राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

    भावार्थ-हे पवनसुत श्रीहनुमानजी ! आप सारे संकटों को दूर करने वाले हैं तथा साक्षात कल्याण की मूर्ति हैं। आप भगवान श्रीरामचंदजी, लक्ष्मणजी और माता सीताजी के मेरे ह्रदय में निवास कीजिए।

    व्याख्या– भक्त के ह्रदय में भगवान रहते ही हैं। इसलिए भक्त को ह्रदय में विराजमान करने पर प्रभु स्वत: विराजमान हो जाते हैं। श्रीहनुमानजी भगवान राम के परम भक्त हैं। उनसे अंत में यह प्रार्थना की गई है कि प्रभु के साथ मेरे ह्रदय में आप विराजमान हों।

    बिना श्रीराम,लक्ष्मण एवं सीताजी के श्रीहनुमानजी का स्थायी निवास संभव भी नहीं हैं। इन चारों को ह्रदय में बैठाने का तात्पर्य चारों पदार्थों को एक साथ प्राप्त करने का है। चारों पदार्थों से तात्पर्य ज्ञान (राम), विवेक (लक्ष्मण), शांति (सीता) एवं सत्संग (हनुमानजी)- से है।

    सत्संग के द्वारा ही ज्ञान, विवेक एवं शांति की प्राप्ति होती है। यहां हनुमानजी सत्संग के प्रतीक हैं। अत: श्रीहनुमानजी की आराधना से सब कुछ प्राप्त हो सकता है।

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